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जामा मस्जिद पर अंग्रेजों का कब्ज़ा – अंग्रेज तोड़ना चाहते थे जामा मस्जिद

Jama Masjid और 1857 का स्वतंत्रता संग्राम - अंग्रेज क्यों तोड़ने चाहते थे जामा मस्जिद

Jama Masjid and 1857 का स्वतंत्रता संग्राम:  देश की राजधानी का दिल कहे जाने वाली जमा मस्जिद को भला कौन नहीं जानता। लेकिन आज हम जमा मस्जिद के बारे जो बताने जा रहे हैं वो शायद आप नहीं जानते होंगे। खास तौर से खुद मुस्लिम समाज के लोग भी इस सच्चाई को नहीं जानते हैं। एक ऐसी सच्चाई जिसे देश के सभी लोगों को जानना चाहिए। 

तो दिल थाम कर बैठिये क्यूंकि अब हम जो आपको बताने जा रहे हैं उससे आप के रौंगटे खड़े हो जाएंगे और ब्रिटिश साम्राजय के खिलाफ आपका गुस्सा और अधिक बढ़ जाएगा। 

हम बात कर रहे हैं 1857 की क्रांति में जमा मस्जिद के योगदान की। हिंदुस्तान की सबसे पहली जंगे आज़ादी “जिसे 1857 की क्रांति के नाम से जाना जाता है” के दौरान जामा मस्जिद पर अंग्रेजों ने अपना कब्ज़ा कर लिया यहाँ तक कि नमाज़ पर पावंदी लगा दी गई साथ हर तरह के धार्मिक काम पर भी रोक लगा दिया गया। 

आपको शायद ये जानकर हैरानी होगी कि 1857 की क्रांति का बदला लेने के लिए अंग्रेज जामा मस्जिद को तोड़ना चाहते थे। क्योकिं वो इस क्रांति के लिए जामा मस्जिद को जिम्मेदार मानते थे उनका मन्ना था कि 1857 की क्रांति के लिए इसी मस्जिद में योजना बनाई गई थी। 

Jama Masjid और 1857 का स्वतंत्रता संग्राम

आपको बतादें कि जामा मस्जिद मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने 1656 में बनवाई थी और इसे इस्लामिक आर्किटेक्चर का एक अद्वितीय नमूना माना जाता है। इस मस्जिद का निर्माण मुगलों कि राजधानी शाहजहानाबाद में किया गया था जिसे आज हम पुरानी दिल्ली के नाम से जानते हैं

इस मस्जिद का सबसे पुराना नाम मस्जिदे जहाँ नुमा है | ये नाम मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने रखा था जिसका मतलब होता है मस्जिद जो पूरी दुनिया का नज़रिया दे

Jama Masjid - शाहजहानाबाद पर अंग्रेजों का कब्ज़ा

1803 में अंग्रेजों ने शाहजहानाबाद पर कब्ज़ा कर लिया लेकिन मुग़ल सम्राट इस मस्जिद के करता धर्ता बने रहे, इस दौरान मुगलों की शक्ति और उनका दबदबा काफी कम हो गया था।

शुरू में अंग्रेजों ने बड़ी ही चालाकी से काम लिया। अपना साम्राज्य बढ़ाने के लिए उन्होंने लोगों के साथ अच्छा बर्ताव करने की निति अपनाई ताकि लोगों को उनके गंदे इरादों के बारे में भनक तक न लग सके जिसमे वो काफी हद तक कामयाब भी हो गए।

शुरू में लोगों को लगा ही नहीं की उनके साथ कितना बड़ा धोका किया जा रहा हैं। और धीरे धीरे अंग्रेजों ने पुरे जहानाबाद को अपने कब्जे में ले लिया।

अब अंग्रेज हिंदुस्तान में बहुत मजबूत हो गए थे और यहाँ उनकीं हुकूमत क़ायम हो गई। इधर मुग़ल साम्राज्य धीरे धीरे ख़त्म होने लगा।

Jama Masjid - कैसे शुरू हुआ 1857 का स्वतंत्रता संग्राम?

समय बीतता गया और समय के साथ साथ अंग्रेजों के जुल्म भी बढ़ते चले गए। नतीजा भारतीय सैनिकों और लोगों ने मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया। 1857 में ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी को सिपाही विद्रोह का सामना करना पड़ा था। इतिहासकार इसी विद्रोह को स्वतंत्रता आंदोलन का आगाज मानते हैं।

अप्रैल के दौरान, आगरा, इलाहाबाद और अंबाला में पहले से ही अशांति थी। बंगाल में ब्रिटिश सेना के एक गुट के 90 भारतीय सैनिकों को परेड करने और फायरिंग अभ्यास करने का आदेश दिया गया इस गुट में अधिकतर मुस्लिम जवान शामिल थे। 90 सैनिकों में से 85 सैनिकों ने फायरिंग अभ्यास करने से इंकार कर दिया क्यूंकि कारतूस में गाय और सूअर की चर्बी लगी थी।

09 मई को इन सभी 85 भारतीय जवानों का कोर्ट मार्शल कर इन्हे कड़ी सजा दी गई और उन्हें 10 साल की कैद तक की सजा सुनायी गई। नतीजतन ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लोगों का गुस्सा और भड़क गया। कुछ भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश अधिकारियों को चेतावनी दी कि कैद किए गए सैनिकों को रिहा किया जाय नहीं तो अंजाम अच्छा नहीं होगा 

Jama Masjid - मेरठ में कैसे शुरू हुआ विद्रोह

अगले ही दिन 10 मई को मेरठ में  तीसरी घुड़सवार सेना के नेतृत्व में भारतीय सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। जिन ब्रिटिश अधिकारीयों ने इन्हे रोकने या विद्रोह को दबाने की कोशिश की उन्हें मार डाला गया। 

ब्रिटिश इतिहासकार फिलिप मेसन का कहना है कि यह जरुरी था कि मेरठ से अधिकांश सिपाहियों  को 10 मई की रात को ही दिल्ली के लिए रवाना हो जाना चाहिए था। क्योकिं मुग़ल साम्राज्य की राजधानी दिल्ली उनसे महज 40 मील की दूरी पर थी जो विद्रोहियों के लिए सबसे महफूज़ जगह थी।

Jama Masjid - मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फर बने इस विद्रोह के नेता

11 मई को विद्रोही सिपाहियों का एक गुट दिल्ली पहुंचा और मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फर से गुहार लगाई की वो उन्हें स्वीकार करे और उनके नेता बन जाएं

अगले दिन, बहादुर शाह ज़फर ने कई वर्षों के बाद अपना पहला दरबार लगाया इसमें कई बहादुर सिपाहियों ने भाग लिया। इस घटना क्रम से राजा चिंतित तो हुए लेकिन आखिकार उन्होंने इस विद्रोह को अपना समर्थन देने के लिए तैयार हो गए।

Jama Masjid और दिल्ली की घेरा बंदी

अंग्रेजों को जैसे ही खबर लगी की मुग़ल बादशाह बहादुरशाह ज़फर ने विद्रोहियों का साथ दिया है और उनको अपना समर्थन दिया है अंग्रेजों ने दिल्ली की घेरा बंदी शुरू कर दी।

दिल्ली को घेरने में अंग्रेजों को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा। दिल्ली की घेरा बंदी इतनी आसान नहीं थी इसके लिए अंग्रेजों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। अंग्रेजों को इंग्लैंड से और अधिक सैनिक मंगाना पड़ा।

Jama Masjid and 1857 ki kranti

Jama Masjid - बहादुर शाह ज़फर की गिरफ़्तारी और उनके बेटों का क़त्ल

अपनी पूरी ताक़त झोंकेने के बाद बहादुर शाह ज़फ़र को गिरफ्तार कर लिया, और अगले दिन ब्रिटिश एजेंट विलियम हॉडसन ने उनके बेटों मिर्ज़ा मुग़ल और मिर्ज़ा खिज्र सुल्तान और पोते मिर्ज़ा अबू बक्र को दिल्ली गेट के पास खूनी दरवाजा में गोली मार दी। और बहादुर शाह जफ़र को रंगून जेल में भेज दिया गया जहाँ कुछ सालों के बाद उनकी मृत्यु हो गई।

Jama Masjid - पर अंग्रेजों का कब्ज़ा

1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने जामा मस्जिद पर अपना कब्ज़ा कर लिया। उनका मन्ना था की इस विद्रोह की योजना इसी मस्जिद में बनाई गई थी।

अंग्रेजों ने जामा मस्जिद में नमाज़ पर पाबन्दी लगा दी साथ ही हर तरह के धार्मिक गतिविधि पर भी रोक लगा दिया गया।

1857 की क्रांति में बड़ी संख्या में अंग्रेज मारे गए थे और वो इसका बदला लेने के लिए जामा मस्जिद को तोड़ना चाहते थे। उन्होंने लगभग ये साफ कर दिया था कि वो इस मस्जिद को तोड़ देंगे लेकिन भारतियों की एकता रंग लाई इस मस्जिद को बचाने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ फिर से एक बार लोगों का गुस्सा बढ़ने लगा। लोगों के गुस्से को देखते हुए अंग्रेज समझ गए की हिंदुस्तान पर राज करने के लिए उन्हें इस मस्जिद को तोड़ना महंगा पड़ेगा  

अंग्रेज काफी चालक थे वो ये भांप गए कि जिस दिन जामा मस्जिद को नुकसान पहुंचाया गया वो दिन ब्रिटिश हुकूमत का हिंदुस्तान में आखरी दिन होगा। इसलिए अपनी हुकूमत जिसे वो बड़ी मुश्किल से 1857 की क्रांति में बचा पाए थे को कायम रखने के लिए उन्होंने जामा मस्जिद दिल्ली के लोगों को वापस कर दी।

निष्कर्ष

भले ही 1857 की क्रांति में हिंदुस्तान को सफलता नहीं मिली लेकिन अंग्रेजों को ये पता चल गया कि अब हिंदुस्तान में उनकी हुकूमत की उलटी गिनती शुरू हो गई है। और आखिरकर वीर शहीदों का खून रंग लाया और साल 1947 को अंग्रेजों को हिंदुस्तान छोड़ना पड़ा।

वो कहते हैं ना कि  “मुददई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है वही होता है जो मंजूरी खुदा होता है

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